वो सर्द दिन

सर्दी का दिन

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 28 Nov, 2021 | 0 mins read

जाड़े की हाड़ कँपा देने वाली ठंड पछुआ हवा मानो हड्डियों को छेदते हुए पूरे बदन में घुस रही थी।

रीमा बस स्टॉप पर खड़ी बस की प्रतीक्षा कर रही थी।एक तो पहले ही ऑफिस के लिए देर हो चुकी थी,दूसरे बस का दूर दूर तक पता नही था।वह अपने दोनो हाथों को आपस में रगड़ते हुए गर्मी लाने का भरपूर प्रयास कर रही थी।घने कोहरे में सड़क पर कुछ भी स्पष्ट नही दिख रहा था।गाड़ियों के हेडलाइट की रोशनी जब दिखती तो वह आगे बढ़ जाती फिर बस की जगह दूसरी गाड़ी को देखकर निराश होकर पीछे की ओर लौट जाती थी।

घड़ी की सुई तेजी से सरक रही थी,उसे लग रहा था कि अब उसे जरा भी देर हुआ तो बॉस उसे ऑफिस से न निकाल दें।

परेशानी और बेचैनी में उसे जरा भी ध्यान नही था कि वह इस सुनसान बस स्टॉप पर अकेली है।

अचानक वह अपने आस पास देखती है और दूर दूर तक कोई नही दिखता तो वह थोड़ा सहम जाती है।

तभी एक कार उसके बगल से गुजरते हुए आकर एकदम पास में रुकती है,वह अचानक से कार को रुकते देख थोड़ा पीछे की ओर हटती है तभी उसे गाड़ी में उसके बचपन का मित्र दिखता है।वही मित्र जिसे वह दुनिया में अपना सब कुछ समझती थी,और जो उसके दिल के बेहद करीब था।परंतु नियति के आगे विवश होकर दोनो ने अपने अलग अलग रास्ते चुन लिए थे।वर्षों बाद उसे अपने सामने देखकर वह निस्तब्ध हो जाती है,मुँह से आवाज नही निकलती और वह अवाक सी उसकी तरफ देखती रहती है।

तभी पंकज रीमा को बोलता है ,रीमा तुम यहाँ इतनी ठंड में।वह भी अकेली।

रीमा बोलती है कि वह ऑफिस के लिए निकली है।

तब पंकज के लाखों मनुहार के बाद वह उसकी गाड़ी में बैठ ऑफिस की ओर चल पड़ती है।

रीमा के दिमाग में वह समय चलचित्र की भाँति घूम रहे जब दोनो एक साथ इसी गाड़ी में बैठकर घूमते थे और बातों का सिलसिला खत्म ही नही होता था।

आज दोनो बिल्कुल चुप बाहर से शांत और मौन और अंदर शोर से भरे हुए है।

तभी पछुआ हवा का तेज झोंका बगल से गुजरता है और पूरे बदन में एक सर्द सी हवा की लहर घूम जाती है।

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