पतझड़ सम बने जीवन
न दिखे कोई उमंग और तरंग
हरियाली का न हो आभास
बस ठूँठ बनकर दे रहा अपने अस्तित्व
को एक तुच्छ पहचान।
न आने का हर्ष किसी के,
ना जाने का है कोई विवाद
पीली पत्तियों सम छूटता ही रहा,
मृत्यु जब दिखे पास।
कमजोर कर देता रोग व्याधि सब,
नहीं कर सकता कोई अन्य प्रयास।
बसंत आये जीवन में जब,
होठों पर तिक्त हो मंद मुस्कान
नर्म हवा के झोंकों सा जीवन में
एक आये सुखद एहसास।
ख़ुशियाँ मिले जब अपनो के संग
तो लगे आ गया बसंत बहार।
वाह अद्भुत जीवन जो दिखाए
पतझड़ और बसंत की बहार।
जीवन पतझड़ और बसंत का मिश्रण
संग चले खुशी और गम।
वक़्त का पहिया दिखाए
अस्थिर समय का अस्थिर एहसास।
कभी उदासी मन पर तारी,
कभी बसंत की तैयारी।
यही जीवन बनें जो पतझड़ और बसंत।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.