देखा तूने सदा ही
गुलाब की खूबसूरती
उसका रूप रंग और सुगंध।
सराहा उसकी सुंदरता को
इठलाना उसका खुद की सुंदरता पर।
पर नही देखा कभी उसकी कृतघ्नता
अपने काँटों की चुभन
उसने सदा ही माली के हवाले किया।
वही जिसने खाद पानी डालकर
रखा दिन रात उसका ख़्याल।
तराशा उसे ,
उसको आकर्षक बनाने केलिए
किया खुद को होम।
अरे गुलाब ,तू तो मानव की तरह बन रहा।
जिसने उसी पेड़ को काटा
जिसने धूप में सहारा दिया।
उसी को गिराया
जिसने हाथ थाम खड़ा किया।
रूप रंग सुंदरता मन का भ्रम है,
असली सुंदरता दिल की खूबसूरती है।
जहाँ कृतज्ञता हो दिल से,
जहाँ शुकराना हो
वही सच्ची रब की बंदगी है।
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