आज जब महिला समानता और महिला सशक्तिकरण की हम बात कर रहे हैं तो मेरा मानना है कि महिला सशक्तिकरण उंस प्रकार होना चाहिए कि उन्हें विशेष रियायत न देकर समान रूप से पुरूषों की तरह ही अपनी क्षमता का उपयोग कर अपना मुकाम हासिल करना चाहिए।
आज के इस दौर में जब महिला पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही,बराबर रूप से उन्हें अपने विकास के अवसर मिल रहे।किसी भी क्षेत्र में उन्हें कमतर आँक कर पीछे नही किया जा रहा।बड़े से बडे निर्णय लेने की ,किसी भी मुद्दे पर अपने विचार रखने की,पढ़ाई से लेकर हर क्षेत्र में उन्हें अपनी पहचान और स्थान बनाने की पूरी छूट है तो घर से लेकर बाहर तक उन्हें विशेष तरजीह क्यों दी जा रही और अगर ऐसा किया जा रहा तो उसे बदलने की पूरी छूट उन्हें क्यों नही मिल पा रही।
मेरा मानना है कि महिलाओं के विकास के लिए सबसे पहले साँझेदारी में समानता होना जरूरी है।
इसको दो तरह से हम देख सकते हैं।
पहली उनके लिए क्या करने देना चाहिए-
1.महिलाओं को आर्थिक निर्णय लेने की आजादी दी जाए,उन्हें अपने वेतन,जरुरतों ,अपने शौक के साथ ही साथ अपनी संपति के विषय में निर्णय लेने ,विचार रखने की छूट मिले।बहुत बार ऐसा होता कि कागजों में उनके पास अकूत संपत्ति होती पर हक़ीक़त में वह शून्य होती।
2.अपने विषय,शौक ,नौकरी और इसके साथ ही अपने जीवन साथी चुनने की पूरी आजादी मिले।
3.कोई भी निर्णय उनपर थोपा न जाये बल्कि स्वेच्छा से वह सही गलत,पसंद नापसंद के बारे में बता सकें।
दूसरा महिलाओं को स्वयं कार्य करना चाहिए-
1.परिवार की आर्थिक मुद्दों को संभालने की जिम्मेदारी उन्हें भी लेनी चाहिए, सारे कार्य पुरूषों पर नही छोड़ना चाहिए।
2.मॉं बाप की संपत्ति में ही सिर्फ उन्हें हिस्सा नही लेनी चाहिए उनकी जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए।
3.नारीवाद के झूठे बहकावे में आकर रिश्तों को शर्तों पर न चलाकर स्वयं ही रिश्तों को परस्पर प्रेम विश्वास और आपसी समझदारी से संभालना चाहिए।
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