अनथक अनवरत करता रहता श्रम,
खेतों में माटी से सोना उपजाता
धूल मिट्टी से सना हुआ रहता है वो,
फिर भी श्रम से नही कभी घबड़ाता।
सर्दी गर्मी हो या बरसात कोई फर्क नही उसे,
सूरज के उगने से पहले वह उठ जाता
कठिन श्रम साधना करता है वह प्रतिदिन,
वसुंधरा को हरियाली है वह दे जाता।
अन्नपूर्णा बनकर वह फसलों को उगाता,
उसके मेहनत का फल सबके पेटों में जाता
उचित पारिश्रमिक के अभाव में
उसका जीवन नही कभी सुधर पाता।
फिर भी श्रम से न घबड़ाता वह कभी,
धरा के लिए है अपना फर्ज निभाता।
मिट्टी को सोना बनाने के लिए सदैव
वह कड़ी धूप में भी पसीना बहाता।
किसान का इस धरा पर सम्मान हो,
उसका दर्जा जैसे भगवान हो,
हर पेट की क्षुधा बुझाता है वह सदा,
उसकी सदा ही रहे इस भूमि पर शान हो।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहोत सुंदर प्रस्तुति
Please Login or Create a free account to comment.