उतार चढ़ाव भरे जीवन से गुजरते हुए राधिका ने कभी सोचा भी नही था कि उसे प्यार हो सकता है या कोई उसे प्यार कर सकता है।
खुद को हमेशा ही वह बचाने की कोशिश में लगी रहती थी,इस एहसास को वह अपने जेहन पर लाना भी नही चाहती थी,क्योंकि उसे पता था कि उसकी सीमाएं क्या है,कहाँ तक उसकी पहुँच हो सकती है।
या फिर उसे पता था कि इस सफर में वह चल तो सकती है,पर मंजिल मिलना मुश्किल ही नही नामुमकिन है।
पर कहते हैं न भावनाओं पर बाँध लगाना आसान नही होता और प्रेम पर तो बिल्कुल ही नही।
कब कोई आपके जेहन में आकर बस जाता है आपको पता भी नही चलता और कब सोचों का सिलसिला उस पर से शुरू होकर उस पर ही खत्म होने लगता है आपको इसका अंदाजा भी नही होता।
वास्तव में सही मायने में प्रेम तो वही होता है जो पूर्वनियोजित नही हो और एक सुखद एहसास मन में लाये।
जहाँ कुछ पाने की ख़्वाहिश न हो बस ख़्वाहिश हो तो दो मीठे बोल की।
राधिका के साथ भी यही हुआ ,यूँही हाय हेलो से बातें शुरू हुई और फिर घर परिवार धर्म राजनीति समाज दुख सुख हर मुद्दे पर बातें होने लगी।
और बातों से ही राधिका और मुकेश इतने करीब हो गए कि लगता कि सारे बंधनों को तोड़कर एक हो जाएं ।
पर वह प्यार ही क्या जो एक दूसरे में इतने रम जाएं कि एक दूसरे की प्रतिष्ठा ,एक दूसरे की मजबूरियों को न समझ पाएं।
राधिका और मुकेश ने दिल ही दिल एक निर्णय लिया कि ताउम्र प्रेम के इस बंधन में बंधे रहेंगे।
और प्रेम की एक मिसाल बनाएंगे।
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