वो अजनबी था न जाने कब अपना बना,
संग उसके जुड़ा दिल का ये मेरा सिलसिला।
उसकी बातों से दिल को बड़ी राहत मिली,
दर्द कम हुआ जैसे मुझको मरहम मिला,
दिल के हर राज का वह मेरे राजदार बना,
उसके होने से मुझको है बड़ी हिम्मत मिली।
मेरे वजूद को उससे एक बड़ी पहचान मिली,
दिल को लगा फूल खुशियों का है खिला,
वो अजनबी कहाँ अजनबी ही अब रह गया,
मेरे वजूद का वह एक हिस्सा यारों बन गया।
उसके मिलने से सफर सुहाना सा बन गया,
सफर के मुश्किलों में भी मुस्कान चेहरे पर खिला,
संग उसके हँसना और रोना अच्छा मुझको लगा,
बेमकसद जीवन को एक उद्देश्य मिल गया।
राह में अजनबी कहाँ अजनबी से रह जाते हैं,
दिल से जुड़कर दिल में आकर वह बस जाते हैं,
जिंदगी को सदा ही एक नए मायने देकर वो,
जिंदगी में एक विशेष जगह बना ही जाते हैं।
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