ये उम्र है बेपरवाह अलमस्त फकीरी का,
जिंदादिली से जिया जिंदगी
बताया यह रंग है जिंदगी का।
ना नियमों का कोई बंधन माना,
ना अनुशासन को पहचाना,
बस जो मन में आया,
उसे कर गुजरने की हरदम ठाना।
ये लड़कपन उम्र है ऐसा अलमस्त फकीरी का।
ना रोक टोक की परवाह,
ना डर कोई मन में आया,
बस जो है पसंद उसे करना।
बस यही चाहत है लड़कपन का।
लड़कपन उम्र है दीवानगी बेपरवाही का।
ना जिम्मेदारियों का बोझ सिर पर,
ना छल कपट कोई दिल में,
बस जो दिल को लगे अपना,
वही बन जाये दिल से अपना।
ना छोटे बड़े की कोई तुलना,
न जाति पाँति का कोई भेदभाव,
बस यही लड़कपन की सरलता,
बस लड़कपन की सहजता,
बचपन उम्र है अलमस्त अल्हड़ बेपरवाही का।
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