देखी आज एक बार फिर उत्सव की तैयारी है,
बुराई पर अच्छाई की विजय की कहानी जारी है।
आज फिर एक रावण का पुतला बना है,
बुराई के प्रतीक को जलाने की अब आई बारी है।
धूँ धूँ कर जल रहा पुतला और पटाखों की शोर,
बुराई खत्म हो गयी ये बात फैली है चहुँओर,
अच्छाई जीत गयी ये सब हर तरफ दुहरा रहे,
सत्य की ही विजय होती इसी बात पर है जोर।
मगर एक प्रश्न मन में मेरे बड़ी देर से कुलबुला रहा,
बुराई हर जगह है फैली यह तस्वीर मुझे दिखा रहा,
धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर है लड़ाई,
नारी अस्मिता खतरे में और गरीबी हावी समझा रहा।
मन के अंदर ईर्ष्या प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही,
संस्कृति को धता बता दुनिया कैसे है बहक रही,
संस्कारों के नाम को पिछड़ापन का जामा पहनाते,
आधुनिकता के नाम पर दुनिया कैसे चहक रही।
रावण के पुतले का दहन मात्र एक दिखावा है,
बुराई कहाँ खत्म हो रही यह नही समझ आया है,
अच्छाई की जीत का जश्न बताओ कैसे मनाए
विकास के नाम पर हमने अपने जड़ों को गंवाया है।
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