उलझन

उलझन

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 23 Aug, 2022 | 0 mins read

उलझनों का अदृश्य तार बाँधता है मस्तिष्क को,

सुलझाने की है जद्दोजहद तलाशता है सिरे को,

कसमसाहट ,बेचैनी,बेकली और तड़प मन में,

सुकून ढूँढने से भी नही मिलता है कही मन को।


रिश्तों में अपेक्षाएं और उपेक्षाएं तोडती ह्रदय को,

अपने पराये की कश्मकश बेचैन करती रूह को,

तोड़ कर हर दीवार बंदिशों को भागना चाहता मन,

जिम्दारियों से आराम नही मिलता है इस जिस्म को।


जीवन रण में कड़ी प्रतिस्पर्धा बेचैनियां रहती हावी,

एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ होती प्रभावी,

उलझनों की तार को सुलझाने का प्रयत्न सदा ही,

कोशिशें शायद सफल हो उन्नति दिखे राह भावी।


वैचारिक मतभेद और मानसिक द्वंद है जब बढ़े,

राह अंधकार में जीवन की सदा ही फिर लगे,

नकारात्मकता होती है फिर हावी हमारी सोच पर,

व्यथित ह्रदय,व्यथा दिल की हम किससे है कहे।

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