बसंत ऋतु परवान पर था ,धरती पीत वर्ण के आत्भा से दमक रही थी,खेतों में पीले सरसों,गेहूं की पकी सुनहली बालियाँ,बागों में रंग बिरंगे खिलते फूल,पलाश की सुंदरता मन को मोह रही थी।
ऋचा इन रंगों की आभा को देखकर खूब खिलखिला रही थी।उसे चटख रंग जिंदगी से भरपूर लगते थे और इन रंगों के प्रति उसका सहज ही मोह था।जब भी वह बाजार दुकान अपनी मॉं या भाभी के साथ जाती झट से अपने लिए चटख लाल रंग या फिर समृद्दि से भरपूर हरा रंग का ही कपड़ा पसंद करती थी।परंतु माँ के झिड़कने पर वह चुप हो जाती थी और माँ द्वारा पसंद किए गए हल्के रंग के कपड़े से ही काम चला लेती थी।परंतु उसके बाल सुलभ मन में जितना ही प्रतिबंध लगाया गया था उतना ही इन रंगों के प्रति आकर्षण था।उसने मन ही मन ठान लिया था कि अपने दम पर जब वह अपनी पहचान बनाएगी तो इन हल्के रंगों को सदा के लिए ही त्याग देगी।
आज होली के दिन हर तरफ इंद्रधनुषी रंग बिखरे हुए थे,ढोल ताशे ,नगाड़े के बीच सब अपनी धुन में मस्त थे।
ऋचा भी अपने परिवार वालों के साथ होली का आनंद ले रही थी।भले ही उसके मन में रंगों के प्रति कितनी ही चाह हो, पर उसे मालूम था कि ये रंग उसने उसी दिन खो दिए हैं।जिस दिन रमेश उसका पति उसे छोड़कर परलोकवासी हो गया था।
वह खोने में खड़ी होकर होली का नजारा देख रही थी और रमेश की यादें उसके मनोमस्तिष्क पर छाई हुई थी।
तभी उसके साथ काम करने वाला सोहम आता है और हैप्पी होली कहते हुए उसके गालों पर सतरंगी गुलाल लगा दिया।
सभी भौचक रह गए कि उसकी इतनी हिम्मत।
तब सोहम आकर सामने बोलता हैं अंकल मुझे ऋचा बहुत पसंद है मैं इसके बेरंग जिंदगी में प्यार के रंग भरना चाहती हूँ।
और सही मायनों में ऋचा की यह होली उसके जीवन में रंग भरने आई थी और रंगों का एहसास कराने आई थी।
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