एक टुकड़ा बादल का

एक टुकड़ा बादल का

Originally published in hi
Reactions 0
682
Ruchika Rai
Ruchika Rai 08 Dec, 2021 | 0 mins read



बचपन से ही उमड़ते घुमड़ते बादलों को इधर उधर घूम फिरकर बरसते देखना उसे सुखद लगता था।और बरसात के बाद जब कई चेहरों पर मुस्कान खिल जाती तो उसे लगता वाकई कितना बड़ा काम है न चेहरे पर किसी के मुस्कान लाना।

उम्र के साथ जब वह शारीरिक रूप से बीमार हुई तो उसे बीमारी से ज्यादा तकलीफ अपनों के उदास चेहरों को ,उनकी परेशानियों को देखकर होने लगा।वह अपना गम छुपा कर होठों पर मुस्कान सजाकर बस उस बादल के टुकड़े की तरह बनने की कोशिश में लग गयी की सबके चेहरे पर मुस्कान ला सके।काश,की चमत्कार हो वह ऐसा बादल का टुकड़ा बन जाये कि सबके साथ खुद को भी खुश कर ले।

0 likes

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.