तलाश थी प्यार और अपनेपन की सदा,
पर अफ़सोस ताउम्र हम भटकते ही रहे,
जिन्हें अपना समझने की हिमाकत की,
उनके लिए हम बेवजह व्यवधान बने रहें।
हमें गुरुर था कि प्यार से अपना बनाएंगे,
और वह भी हमें प्यार से ही अपनायेंगे,
पर रिश्ते की ये कश्मकश रही सदा,
दिल में उनके बस औपचारिकता ही रहा।
अब तो खुद पर से यकीन हम खो रहे,
तलाश छोड़कर हम खुद में गुम हो रहे,
रिश्तों को लेकर मेरा भरम है टूट रहा,
मोहब्बत से रिश्ता बनता किसने कहा।
तलाश बस इतनी की रिश्ते की परिभाषा बदलें,
पूर्वाग्रह में आकर न कोई रिश्ता बिगड़े,
नाम रिश्तों को इस तरह बदनाम न किया जाये,
पुरानी सोच से ऊपर उठकर रिश्ता सँवरे।
Comments
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👍👏👏👏👏
Well penned
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