स्त्री पुरुष

स्त्री पुरुष पूरक

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 14 Oct, 2021 | 0 mins read

जब भी स्त्री पुरुष की बात हुई,

विवाद उठा बराबरी को लेकर,

शोर हुआ समानता के लिए

एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी बना दिये गए,

और फिर होने लगा परिवार का विघटन।

जब भी स्त्री पुरुष पर चर्चाएं हुई,

पुरुष प्रधान दम्भ हावी हुआ।

खुद को श्रेष्ठतर साबित करने के लिए,

कई अनावश्यक बातों को तूल दिया।

वही नारिवादिता के नारे लगे

या फिर महिला मोर्चा का हुआ गठन।

परिणाम बेवजह की खाईयां बढ़ी,

दुख तकलीफ मन में हावी हुई।

आपसी प्रेम कम होने लगा

और हुआ शुरू सामाजिक असंतुलन।

बेकार की प्रतिस्पर्धा ने जहर बोया,

एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ ने लगाव खोया।

जहर सम रिश्ते लगने लगे

और फिर दूरियाँ भी धीरे धीरे बढ़ने लगी।

और फिर कम होने का आसार नजर नही आया।

इस सच को सब भूल गए

प्रकृति ने दोनो को विशेष गुण से नवाजा।

एक दूसरे के संग मिलकर रहे,

इसलिए नजरअंदाज करने पर बल दिया ज्यादा।

दोनों एक दूसरे के पूरक हैं

प्रतिद्वंद्वी नही।

एक दूजे के बिन जीत मिल सकती नही।

कदम से कदम मिलाकर चले,

एक दूजे का ढाल बनें

प्रकृति कहती है यही।

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