उफ्फ कितनी भयानक ठंड है,ये लगता है जान लेकर ही मानेगी।
राधिका अपने दोनों हाथों को रगड़ते हुए भनभना रही थी।वह सोच रही थी कि इस बार ठंड ज्यादा ही पड़ रही है।
तभी उसके घर काम करने वाली सरिता एक पतले से सूट में आती हुई दिखाई दी,उसने पुराना शॉल ओढ़ रखा था।
राधिका ने पूछा क्या सरिता तुझे ठंड नही लग रही क्या?
इतने पतले से शॉल ओढ़कर आई है स्वेटर भी नही पहना है।
सरिता ने कहा अरे नही दीदीजी ठंड तो बहुत है पर क्या करूँ,माई ठंड से कॉंप रही थी तो स्वेटर उसे दे दिया और शॉल ओढ़ाकर बिटिया को सुलाकर आई हूँ।
मैं अगर ठंड में ठिठुरने लगूं तो घर में खाना नही बनेगा,और वह जाकर काम करने लगी।
इधर राधिका का हाल बेहाल था,ठंड से वैसे भी उसे दिक्कत होती थी उस पर से इस ठंड ने तो उसकी बीमारी को भी बढ़ा दिया है।
वह कमरे का हीटर जलाकर बैठ गयी।
फिर उसे सरिता का ध्यान आया तो वह सोचने लगी आखिर मजबूरीवश ही तो वह ठंड सहन कर रही है।
फिर धीरे धीरे बिस्तर से उठी और आलमारी से एक शॉल और स्वेटर निकाली और सरिता को पकड़ाते हुए बोली,कल से इसे पहनकर आना।
सरिता के होठों पर सुकून वाली मुस्कुराहट थी,दीदीजी मैं बड़ी परेशानी थी बड़ी बेटी को शॉल स्वेटर चाहिए थे,घर में एक ढेला भी नही है।
अब मैं निश्चिन्त हो गयी।
राधिका ने पूछा और तुम?
सरिता ने कहा कि दीदीजी जिंनके ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ होता उनपर मौसम की मार का कोई असर नही होता।
राधिका अवाक होकर देखने लगी।
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