आलिंगन

आलिंगन

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 27 May, 2024 | 1 min read

गोधूलि बेला मद्धम होती रोशनी,

सूर्य का पश्चिम दिशा में जाते -जाते,

धीरे-धीरे आसमां में खो जाना,

जैसे धरा और गगन करते आलिंगन।

 

पहाड़ों से झरते झरने झर-झर कर,

मधुर संगीत के संग पहाड़ों के बीच से

रास्तों को काटकर बहते ही जाना,

और जाकर समुंदर में मिल करते आलिंगन।


बागों में पुरवा हवा के झोंको संग

झूमती हुई डालियां पत्तों के संग,

छू लेती हैं इस पौधों से उस पौधे को

मानो कर रही हो झुककर आलिंगन।


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Ruchika Rai

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