बदलते रिश्ते

बदलते रिश्तों की परिभाषा

Originally published in hi
Reactions 0
519
Ruchika Rai
Ruchika Rai 28 May, 2022 | 1 min read

सोशल मीडिया के इस युग में

एक प्रश्न मेरे मन में आया

मैंने यहाँ क्या क्या बोलो पाया,

और क्या अपना है लुटाया।


प्रश्न कठिन था लगी ढूँढने उत्तर

क्या खोया क्या पाया का 

कभी हिसाब किया नही था मैंने

फिर होने लगी निरुत्तर।


तभी मन ने कहा रूको जरा याद करो

क्या क्या पाया है उसके शुक्रगुज़ार बनो।

सबसे पहले तो बचपन के सारे संगी साथी,

जो भटक गए थे जीवन राहों में

उनको पाकर मन मेरा हर्षित हुआ।


उनके संग बचपन की थी ढेरों बातें,

कुछ अपनी तथा कुछ बच्चों की थी शरारतें।

फिर बहुत दूर के रिश्तेदार मिले,

जो दूर रहकर भी बिल्कुल अपने पास हुए।


फिर मिला जीवन का नया नजरिया,

सीखने सिखाने का क्रम शुरू हुआ,

कुछ सीखा जिसने मजबूती से खड़ा किया।

पाया आत्मविश्वास कैसे करनी है किससे बातें,

अपनों के बेगानेपन से भी यही मुझको भेंट हुआ।


फिर धीरे धीरे नये लोगों से जान पहचान हुई,

नये होकर नये न रहे इतनी शान रही।

कुछ दिल के बेहद करीब हुए,

कुछ से बिन रिश्ते के भी रिश्ते हैं जुड़े।

रिश्तों के इस बदलते स्वरूप का नही कोई पूर्वानुमान रहा।


कुछ ने ताकत हिम्मत हौसला दिया,

कुछ ने खुशियाँ और गम मिलकर बाँटा,

कुछ ने मेरे लिखे को है सराहा,

कुछ ने गलतियों पर मुझको डाँटा।

बस फ़ोन और सोशल साइट्स से मिले,

फिर भी दिल से दिल हैं जुड़े।


इस तरह इस युग में रिश्तों की बदली परिभाषा,

बिन मिले भी कुछ रिश्तों से जुड़ी आशा,

सामान्य परिचय से पहचान हुई,

फिर धीरे धीरे दिल के करीब

और एक दूजे में अपनी जान रही।

इंटरनेट की दुनिया से बाहर आकर भी मिले,

ये खूबसूरती बदलते रिश्ते की अभिमान रही।

0 likes

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.