सरिता उछलते कूदते रास्ते पर पड़े कंकड़ को मारते हुए जा रही थी।रास्ते में उसने गुलदाउदी के फूल के पौधे से सजा हुआ एक घर देखा।वह धीरे धीरे पैर दबाकर गेट के पास पहुँची।गेट से झाँक कर वह इधर उधर देखी की कोई देख तो नही रहा।जब उसने देखा कि कोई देख तो नही रहा,तब नजर बचाकर उसने पूरा एक फूल का गुच्छा तोड़ लिया।
और फिर उछलते कूदते गाना गाते घर पहुँच गयी।
घर के अंदर जैसे ही वह घुसी मम्मी ने चिल्लाते हुए कहा-फिर तुमने जूते से कंकड़ मारा।बार बार समझाती हूँ कि जूता इससे फट जायेगा।अभी पिछले महीने ही जूता खरीदा था और फटने लगा।मैं नया कहाँ से लाऊँगी।तभी सरिता के हाथों में फूलों का गुच्छा देखा तो एकदम से चुप हो गयी और फिर डाँटते हुए बोली फिर तुमने फूल तोड़ा।कितनी बार मना की हूँ,फूल पौधों पर ही अच्छे लगते।पर नही तुमने सुनना ही नही।
सरिता बोली माँ क्या हो गया जो तोड़ लिए तो मुझे तोड़ना अच्छा लगता।
माँ ने कहा-"अरे बेटा'",सोच अगर तुम्हें कोई चोट पहुँचाये तो कैसा लगेगा।पौधों में भी जान होती उन्हें तकलीफ होती।
सरिता ने कहा-अरे मॉं, कुछ भी पौधों में जान होती कैसे पता?
माँ ने कहा-बेटा, पौधे बढ़ते हैं साँस लेते हैं बीज होते ,फल और फूल निकलते।
सरिता ने कहा-गलती हो गयी माँ, आगे से नही तोड़ूंगी।
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