प्राण वायु
लगातार 50वीं जगह कॉल करके प्रत्युत्तर में ना सुन कर प्रमोद का दिमाग सुन्न पड़ गया था।
बढ़ते कोरोना के कहर ,पत्नी की बिगड़ती स्थिति उसको साँस लेने में हो रही परेशानी, उस पर से 2 वर्षीय बच्चे का भी कोरोना संक्रमित होना उसको परेशान कर रहा था।
बार बार उसके मन में नकारात्मक विचार आ रहे थे, डॉक्टर की आवाजें कानों में गूँज रही थी कि फेफड़े पर ज्यादा जोर पड़ रहा है।ऑक्सीजन की तत्काल जरूरत है।
हर तरफ से हताश और निराश होकर प्रमोद ईश्वर के समीप हाथ जोड़कर बैठ गया। आज उसे पूरी तरह समझ आ रहा था कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल होने के लिए वह जो गाँव के स्वच्छ वातावरण को छोड़कर यहाँ आया है जहाँ पानी खरीद कर पीना अपनी शान समझता था,वहाँ अब प्राण वायु खरीदने की भी जरूरत आन पड़ी है।
उसे गाँव का घर हरियाली खेत,पेड़ पौधे और सुबह की सुहानी हवा याद आ रही थी।
तभी उसके फ़ोन की घंटी बजी और उसकी तंद्रा भंग हुई।एक मित्र ने कहा कि ऑक्सीजन सिलिंडर का इंतजाम हो चुका है।मित्र और ईश्वर का शुक्रिया करते हुए वह बताये गए पते पर ऑक्सीजन सिलिंडर लाने के लिए निकल पड़ा।
और मन ही मन यह सोचते हुए जा रहा था कि जल्दी से पत्नी ठीक हो जाये तो वह अपने घर के आस पास की जमीन पर पेड़ अवश्य लगाएगा।
ताकि प्राणवायु के लिए आने वाली पीढ़ी को तरसना न पड़े।
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