जिंदगी ने हमारे साथ बड़ी बेवफाई की,
जमाने भर में मेरी बड़ी ही रुसवाई की।
जमाने में भीड़ बड़ी थी मतलबपरस्तों की,
मुझे तो आदत हो गयी थी तनहाई की।
झूठ का बोलबाला है फैला हुआ हर तरफ,
वो यक़ी दिलाता रहा अपने पारसाई की।
अब तो खुद पर भी एतमाद न रहा मुझको,
कैसे यक़ी करूँ बोलो उसके आशनाई की।
मुहब्बत खुद से कर लो ये सबक जिंदगी का,
मुश्किलों में साथ छूट जाता परछाई की।
बेवजह की उलझनों में क्यों उलझते रहे,
अब तो फ़ितरत छोड़ दो अपनी लड़ाई की।
हर खता के बाद मुआफी माँगना तेरा,
अब तो आदत पड़ गयी है इस सफाई की।
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