ये कैसा प्रेम

ये प्रेम का क्या रूप

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 28 Jun, 2022 | 1 min read

कोई वादा नही था,

कोई कसमें भी नही खाई थी,

बस कुछ दुख सुख के पल

सांझा किये थे।

कुछ जागती रातें संग हमने बिताई थी।

ठीक वैसे जैसे चाँद जागता है

सारी रात

हमारे संग हमारे रतजगों का साथी बनकर।


न मिलन ही कभी हुई थी,

नही थी कोई मिलन की प्रतीक्षा।

नही पाया ही कभी था,

नही खोने का डर मन में था कभी आया।

ठीक वैसे जैसे मंद समीर तप्त गर्मी में

हल्के झोंके

संग आकर राहत पहुँचा जाता है।


अजीब सी कश्मकश मन ने है पाली,

जैसे छूट रहा बहुत कुछ

जैसे मुट्ठी से रेत सरकता हो जैसे।

अजीब सी है उलझन

नही मिलती है थोड़ी भी मन को राहत।

जैसे उमस भरी गर्मी के बाद 

हल्की सी आती है जो बारिश

बढ़ाती है बेचैनी।

वैसे ही हो रही है हालत।


नाम क्या दूँ इसे 

क्या बताऊँ कैसी है ये उलझन

दो राहें पर है ये मन,

प्रभु बस इतनी सी मन्नत 

करती हूँ तेरी इबादत।

सुकून दे दे मन को

नही बचे कोई बेचैनी।

पाकीज़गी हो इश्क की 

रूह से जुड़कर 

बस इतनी इबादत।

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