टूटता रिश्ता

खत्म होते रिश्ते

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 22 Dec, 2022 | 1 min read

देखा बड़ी फक्र से आरोपों का

दौर चल रहा था।

लानतों मलामतों का सिलसिला था,

ताने और कटाक्ष भी जारी थे,

क्योंकि अहम हावी हो गया था।


संयम के इम्तिहान हो चुके थे,

सब्र भी बाँध तोड़ चुका था,

विश्वास का धागा जो बँधा था,

वह कब का टूट चुका था,

अब शेष ऐसा कुछ नही था जो रिश्तों 

को जोड़ता था।


समानता और अधिकारों की बात

हर जगह हावी हो रही थी।

कर्तव्य और जिम्मेदारी कोने में पड़ा

चुपचाप सिसकियां ले रहा था।

बस नाम मात्र ही रिश्ता रह गया था।


सब कुछ सबको समझ आया था,

बस यही समझ नही आ रहा था।

रिश्तों में प्रेम का स्थान होता है,

जबरदस्ती से कोई रिश्ता कब तक चल सकता है।


इस तरह एक रिश्ता बिखरा रहा था,

और समाज आधुनिकता के नाम पर 

मिसालें गढ़ रहा था।

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Ruchika Rai

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