क्या तुम पढ़ सकोगे
चेहरे की झुर्रियों के पीछे की कहानी को।
उनके समय की भट्ठी में तपे अनुभव को,
और उनके संघर्षों को
या फिर समय के साथ तालमेल बिठाने की
जद्दोजहद में उलझे उनकी आत्मा की बेचैनी को।
अगर पढ़ सकते तभी लिखना
चंद शब्द ,चंद अल्फ़ाज़, जो उनको ही
समर्पित हो।
जो उनके साथ न्याय कर सकें।
क्या तुम पढ़ सकोगे
चेहरे की झुर्रियों के पीछे की हर उलझन को।
हर धैर्य और संयम को
हर उस ख़्वाहिशों को जिसे उन्होंने मन में ही मारा।
फिर भी दृढ़ बनें रहे ताकि
अपनों के चेहरे पर मुस्कान ला सकें।
अगर पढ़ सकते तभी लिखना
वरना स्याही की कद्र न रह जायेगी,
जो पन्नों को यूँही रंगती जाएगी।
क्या तुम पढ़ सकोगे
चेहरे की झुर्रियों के पीछे छिपे स्वेद को,
जो जी तोड़ मेहनत से बहकर आये थे
जिन्होंने मन को दृढ़ बनाया था
और बताया था कि जिंदगी की खूबसूरती
तजुर्बों से ही आती है।
अगर पढ़ सकते तभी लिखना
वरना स्वेद जो अथक परिश्रम के बाद निकला था
वह जाया हो जाएगा।
और शब्द हो जाएंगे बेमोल।
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