बचपन

बचपन के दिन

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 14 Nov, 2021 | 0 mins read

दैनिक कार्य



बचपन का वो मासूम जमाना,

माँ पापा का गोद था ठिकाना,

नही फिकर नही कोई चिंता,

हर गम से दिल था अनजाना।


वो बात बेबात रूठना मनाना,

शोरकर घर सिर पर उठाना,

वो दादी नानी के कहानी किस्से,

परियों की दुनिया में था खो जाना।


वो भाई बहन का लड़ना झगड़ना,

वो टॉफी पाने के लिए मचलना,

भरी दुपहरी में घर से निकलकर,

गलियों में निकलकर भटकना।


वो बागों में जाकर केरियाँ खाना,

वो तितली पकड़ने के लिए दौड़ लगाना,

वो गुड्डे गुड़ियों की शादी मे बन बाराती,

मजे से उनका ब्याह रचाना।


वो ना पढ़ने के बहाने बनाना,

वो खेलना कूदना नाचना गाना

वो छोटी सी बातों पर होती कट्टी,

वो पल में रूठना पल में मान जाना।


कोई लौटा दो वो बचपन के दिन,

बेफिक्री वो अल्हड़पन ढूँढ लाना।



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Ruchika Rai

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