ख़्वाबों का ये सिलसिला ना जाने कब से जुड़ा,
पूरा करने को मचलता मन ,नही रहा कोई गिला,
इरादों में थी जान डाली हौसलों की डोर थामी,
कोशिशों की प्रत्यंचा से लक्ष्य पर हमने नजर डाली।
थी ख़्वाहिश की दुनिया की भीड़ में न गुम हो जाऊँ,
छोटी ही सही स्वयं की पहचान मैं अवश्य बनाऊँ,
चाहे हो कितनी भी विपरीत परिस्थिति जीवन में,
उसके सामने नही कभी अपना सिर मैं झुकाऊँ ।
वक़्त ने भी ली खूब मेरे इरादों की कड़ी परीक्षा,
हार मान बैठ गयीं नही बाकी बची कोई भी इच्छा,
अफसोस मन में सालता रहा टीस मन में थी उठी,
जीवन सफर के दुर्गम रास्तों पर व्यर्थ हो गयी मेरी शिक्षा।
परिवार के साथ ने मेरे कुंद हौसलों को जगाया,
विस्तृत नभ में उड़ने को मुझे सपना है दिखाया,
चल पड़ी जिंदगी समर में अपनी पहचान को बनाने,
पंखों को मजबूत करने को मैंने जोर खूब लगाया।
धीरे धीरे ही सही सपनों की उड़ान भरने की है कोशिश जारी,
बन प्रेरणा दूसरों के जीवन में मुस्कान लाने की है तैयारी,
माँ पापा के आँखों का एक चमकता सितारा बन जाऊँ,
इंसानियत बचा रहें इसके लिए कोशिशें मेरी नही लगती भारी।
एक प्यारी बेटी बहन बन परिवार की रौनक बन जाऊँ,
एक सफल शिक्षिका बन बच्चों के निश्छल मुस्कान
का कारण बन पाऊँ,
अपने भावनाओं का उद्गार पन्नों पर सजाकर
अपनी लेखनी से हर ह्र्दय में एक परिवर्तन लेकर आऊं।
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