बरसात

बरसात

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 17 May, 2021 | 1 min read

हो ऐसी बरसात कि दिल पिघल जाये,

मन पर जमी नाराज़गी उसमें धुल जाये।

फिर से रिश्तों में प्यार की फुहार बरसे,

उस प्यार में हर दिल आपस में मिल जाये।

छोटे छोटे शिकवे मन से हैं मिट जाये,

न दिल में कोई गलतफहमियां फिर रह जाए।

हो ऐसी बरसात की मन के मैल मिट जाये,

सब एक दूसरे के लिए आपस में जुड़ जायें।

बरसात हो कुछ ऐसे की मन में न अगन रहे,

राहत मिले दिल को न कोई उसमें तपन रहे।

सुकून का परचम कुछ ऐसे यहाँ लहराये,

शीतलता का एहसास मन को राहत दिलाये।

इस बरसात दोस्ती का पौधा फिर पनप जाये,

सुख चुका था जो वह फिर से निकल आये।

मन के अंदर कही जो बीज दबा हुआ था,

एक बार फिर से वो निकल के आ जाये।

हो कुछ ऐसी बरसात की राहत हमें मिल जाये,

चाहत बनकर वो दिल की जमीं में खिल जाये।

लगे सुहावन मौसम तन बदन को भिंगोये,

लगता है कि मिल चुका है वो जिसे हम थे खोये।

बस अबकी बरसात जीवन में बस जाए,

जैसे बसे कोई मन में तो न निकल पाये।

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