#आधुनिकता क्या सिर्फ परिधानों में है? आज के परिपेक्ष्य में यह प्रश्न स्वावभाविक बनता जा रहा है।आज पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण में परिधानों को ही आधुनिकता का पर्याय समझा जाने लगा है।और ऐसा न करने वालों को कई बार हेय दृष्टि का भी सामना करना पड़ता है।परंतु आधुनिकता सिर्फ परिधानों में नही हो सकती।
मैं मानती हूँ कि आधुनिकता परिधान से नहीं विचारों से झलकनी चाहिए। पहनावा हमारी संस्कृति और क्षेत्रीयता का प्रतीक होती है और वैचारिक आधुनिकता परिधानों से कहीं ऊपर होती है। सही मायने में आधुनिकता तब है, जब हम बदलते समय के अनुसार अपने विचारों को आधुनिक बनाएं न कि परिधानों को। आज भी समाज दहेज प्रथा, छुआछूत, लिंगभेद जैसी सामाजिक बुराइयों और अंधविश्वासों को दूर नहीं कर पाया है। आज मनुष्य परिधानों को तो आधुनिक बना लेता है किंतु अपनी सोच को आधुनिक नहीं बना पाता। गलत विचारों वाला कोई व्यक्ति चाहे कितने ही आधुनिक कपडे क्यों न पहने, वह आधुनिक नहीं हो सकता। स्वामी विवेकानंद जी इसके लिए हमारे एक सटीक उदाहरण हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि परिधान हमारी संस्कृति के भी परिचारक होते हैं न कि विचारों के। युवा पीढी रहन-सहन के आधुनिक तौर-तरीके अपनाने के बावजूद पारंपरिक मूल्यों को साथ लेकर नहीं चलना चाहती। आजकल मनुष्य पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण करके खुद को आधुनिक तो समझते हैं किंतु वो यह भूल जाते हैं कि हमारी संस्कृति में कई ऐसी अच्छी बातें हैं, जिन्हें अपनाने से आधुनिकता कम नहीं होती। आज हमारे नेता भी विदेशों में कुर्ता पजामा पहनकर जाते हैं जो सूट बूट वालों से किसी मायने में पीछे नहीं दिखाई देते, अपितु उनके विचारों को और बातों को अधिक गंभीरता से सुना व परखा जाता है। हमारी संस्कृति व परिधानों को आज के आधुनिक कहे जाने वाले पश्चिमी देशों में भी मान्यता व सम्मान मिला है, साड़ी, धोती कुर्ता और भारतीय परिधान विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं। हमारे विचारों को भी अलग मान्यता मिली है। अतः हम यह कह सकते हैं कि आधुनिकता परिधानों में नहीं विचारों में होनी चाहिये।
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