गए जमाने की है ये बात,
हॉस्टल की चहारदीवारी,
डाकिए का आना,
मन में एक छोटी सी पलती आस।
वो चिट्ठियां होंगी हमारी,
जिसमें होगा ढेर सारा छुपा परवाह और ख़्याल।
चिट्ठी का आना,
मानो मिला हो खुशियों का खजाना,
वो कई बार पढ़ना,
फिर सहेजकर रखना,
मानो उसमें छुपा हो भरपूर प्यार।
गए जमाने की है ये बात,
वो महीने भर की मात्र छुट्टी,
उसमें चलती अपनी मटरगश्ती,
पर उन सबके बीच,
दोस्तों की खोज खबर लेने का ख़्याल।
फिर चलता चिट्ठियों का सिलसिला,
चिट्ठी से पहले ही दोस्तों का हो जाता मिलना।
फिर भी दोस्तों के लिए चिट्ठी
और उसमें ह्रदय का उद्गार
बेशकीमती खजाना,
कहाँ है अब नसीब में पाना।
गए जमाने की है ये बात,
चिट्ठियों में छुपा होता था अनमोल प्यार।
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