सरिता चिल्ला चिल्ला कर सारे सामान उठा कर फेंक रही थी,और बड़बड़ाये जा रही थी।
उसके दोनों बच्चे प्रांजल और प्रांजलि चुपचाप कोने में डरे सहमे दुबके पड़े थे।
मोहन बार बार सरिता को रोकने की कोशिश कर रहा था।
पर सरिता सुनने को बिल्कुल ही तैयार नही थी।
वह बस बोले जा रही थी उसे आजादी चाहिए, इन रिश्तों से आजादी,जिम्मेदारियों से आजादी।
मैं अब इस घर में एक मिनट भी नही रह सकती।
मुझे जाना है।मोहन लगभग गिड़गिड़ा रहा था।सरिता भगवान के लिए अपने इन छोटे बच्चों के बारे में तो सोचो।वह एक माँ के बिना बिखर जाएंगे।
सरिता ने कहा ,क्यों,बिखर जाएंगे ?तुम हो न
क्या बच्चों को पालने की जिम्मेदारी सिर्फ माँ की होती।
बच्चों को बाप पाले तब तो उसे पता चला कि माँ होना आसान नही।
मोहन ने कहा ,अरे नही सरिता बच्चों की जिम्मेदारी दोनों की होती,मैं कहाँ कह रहा कि सिर्फ तुम्हारी जिम्मेदारी है।
पर बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए माँ बाप दोनों का होना जरूरी है।
मगर सरिता सुनने को बिल्कुल तैयार नही थी।
उसने आजादी शब्द का अर्थ दूसरे रूप में ले लिया था।
उसके लिए आजादी का मतलब मनमर्जी था,जिम्मेदारियों से मुक्ति था।
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