जिम्मेदारियों का पुलिंदा,
कार्यों की फेहरिस्त,
दिन रात का श्रम,
तुष्टिकरण की नीति
और अंत में स्वार्थपरता
सब कुछ बर्बाद करने पर हुए आमदा।
दोष किसका?
नेतृत्व की कमी
या नेतृत्वकर्ता के गुणों का अभाव,
तानाशाही रवैया
या फिर स्वयं को श्रेष्ठतम साबित करने की जिद
आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला,
दूसरों की कमियों के भान।
दोष किसका?
आहत भावनाएं
कौन समझे,किसको समझाएं,
समर्पण और त्याग के बिना
कैसे करें हम सुदृढ़ नेतृत्व की कल्पनाएं।
स्व से ऊपर उठकर जब परहित को सोचे
तभी सफलता हम पाएं।
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