प्रेम मेरी देहरी पर आया

प्रेम मेरी देहरी पर आया

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 06 Feb, 2022 | 1 min read

न जाने कब कैसे दबे पाँव

प्रेम मेरी देहरी पर आया।

जब निराशा के घने तम में

आशा का कोई जुगनू नही बचा था।

उसने आकर मेरे गालों को

एक थपकी दी।

दिया बोसा

मेरे माथे पर 

और मुझे सहलाया।

उम्मीद का एक सिरा पकडकर

दूसरे को मुझे थमाया

और बताया जीवन खूबसूरत है

तमाम निराशाओं के बीच।

न जाने कब कैसे

बंद दिल के दरवाजों को तोड़

प्रेम मेरे दिल में समाया।

स्वयं से प्रेम,

स्वयं को सँवारने की जुगत

मेरे मन को है सीखाया।

कोमल कल्पित कल्पनाओं को

जी कर के सदा ही

जीवन का रहस्य मुझको सीखाया।

खुशी में मुस्कुराने की वजह देकर,

दर्द में भी धीरज धरना बताया।

न जाने कब कैसे 

आहिस्ता से प्रेम न आकर जीने का

अलग अंदाज बताया।

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