कविता

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 24 Mar, 2022 | 1 min read

व्यथित विचलित मन ,

सुकून और शांति की तलाश में भटकता

फिर वही चाय की प्याली,

और किताबों से झाँकती,

जिंदगी की तल्ख हकीकत,

या फिर जीने का तजुर्बा।

दे जाती मन को करार 

सुलझाती उलझनों की गाँठ,

पलटते पन्नों के साथ।

एक एक चुस्की जब रूह तक उतरती,

सोच का सिलसिला मुड़ता,

उदासी से खुशी की तलाश की तरफ,

विषाद से हर्ष की तरफ,

और गिरने से संभलने की तरफ,

बस यही एकांत के क्षणों में

सोचों का साथ।

एक एक शब्द जिंदगी की 

परिभाषा सिखलाते।

किताब के हर पन्ने एक नई कहानी बतलाते,

चाय की मिठास

घुलती जुबा के साथ।

और व्यथित मन को मिल जाता

पल भर का उम्मीद और आस।

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