विजय पर्व

विजय का उत्सव

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 01 Oct, 2022 | 1 min read

उदासियों का जो है मन में डेरा,

निराशाओं का जो बन गया बसेरा,

हताशाओं का जो छुपा है अंधेरा,

इसको जो हम खत्म कर पाये

तभी हम अँधेरे पर उजाले का

विजय दिवस मनाए।


हार से जो टूटा हुआ मन है,

नजर नही आये उम्मीद का किरण है,

हौसले पस्त हो तो थका तन है,

यह जो नही मिट सके तो बोलो

उदासी पर खुशी के विजय का पर्व

कैसे हम मनाएं।


भाई भाई में हो रहे तकरार हैं,

संस्कारों से नही रह गया प्यार है,

नारी अस्मिता पर होता वार है,

बड़ों का बच्चों से छूटता अधिकार है

बुराई पर अच्छाई की जीत का

पर्व बोलो हम कैसे मनाएं।


रिश्तों में त्याग और समर्पण का अभाव है,

स्वार्थ का हर जगह दिखता प्रभाव है,

विकास के अंधाधुंध दौड़ में बढ़ते हुए,

छूट रहा अपना घर और गाँव है।

ऐसे में हम उत्सव को नये रंग में रंगने का

बोलो कैसे जतन कर पाएं।


चलो अना की हर दीवार मिटा दें,

प्यार के रंग में रंग नफरत की हर दीवार मिटा दें

संस्कारों को पल्लवित पुष्पित कर सदा हम

रिश्तों की मजबूती का सबको एहसास दिला दें।

अमीरी गरीबी का भेद मिट जाए,

जाति पाँति का भेद मिटाकर 

हर मन में अच्छाई की रोशनी फैलाकर विजय पर्व मनाएं।

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