बाल मजदूरी

बाल श्रम अभिशाप

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 13 Jun, 2022 | 1 min read

बाल कल्याण के लिए हो रही हैं बैठकें,

बाल श्रम के रोकथाम की होती चर्चाएं,

बताए जा रहे कैसे छीन रहा है बचपन,

इसी बीच पीछे से आती हैं आवाजें

छोटू एक गिलास पानी है पिलाना।


नियमों की खुल जाती है खुलेआम कलई,

पर फ़र्क नही पड़ता है थोड़ा भी दिखाई,

भाषणों से खूब मिल जाता है वाहवाही,

बाल हित के बड़े बड़े संवैधानिक नियम,

पर चाय के दुकान पर कितने छोटू 

लेकर ग्राहकों को देते हैं चाय,

और पहुँचाते हैं मिठाई।


अनिवार्य शिक्षा के दिये जाते हैं हवाले,

अधिकारों की होती हैं बड़ी बड़ी बातें,

मुफ्त पोशाक, भोजन पुस्तकें और

छात्रवृत्ति बाँटकर हो जाती हैं सरकारों

के कर्तव्य की इतिश्री।

पर भूख की बेबसी और मजबूरी,

कम उम्र में जिम्मेदारियों का बढ़ता बोझ,

और कितने घरों में नौकर रूप में

काम करते हैं ये बच्चे।

समाज का ये धीमा जहर या दीमक

खोखली हो जा रही है समाज की जड़ें।


समाज का ये बनता कैसा ताना बाना,

असमानता का ये फैला मकड़जाल,

दिखावटों का दिखाया जा रहा हवाला,

लालची हो रही फ़ितरत,

जिसके कारण शिक्षा के प्रति हो रहा दुराव।

और बाल श्रम को मिल रहा है प्रोत्साहन।

धिक्कार है बन गयी ये कैसी नियत

और कैसे हो रहा समाज में ये विष वमन।


चलो मिलकर हम सब बचपन को बचाएं,

बाल श्रम से दूर रखें उनको,

शिक्षा के प्रति अभिरुचि को बढ़ाएं।

उनकी जरूरतें पूरी हो सके,

इसके लिए एकजुट होकर सभी

नियमों का सही ढंग से क्रियान्वयन कराएं।

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