तुम से यह हो पाएगा
तुम यह कर सकती हो,
जमीन पर पैर जमाकर
नभ तक विस्तारित हो सकती हो।
अपेक्षाओं का यह संसार,
दे देता कभी दर्द अपार।
कभी विस्तृत संभावनाएं
कभी जाती हूँ मैं हार।
चाहती हूँ एक छोटी सी मुलाकात खुद से
और करती हूँ स्वयं को प्रेम बेशुमार।
खुद से मुलाकात के क्रम में पाया,
खुद को भूलकर हर फर्ज निभाया।
जीना था न जाने कितने ही शौक,
पर इच्छाओं को मारकर
सबकी खुशियों खातिर उसको भेंट चढ़ाया।।
दर्द बेशुमार था मन के अंदर,
होठों पर फिर भी मुस्कान सजाया।
फिर स्वयं को समझाया
गम और खुशी दोनों जीवन की घड़ी है
फिर क्यों मुस्कान छुपाने की पड़ी है।
खुद से मुलाकात ने यह बतलाया,
जैसी हो हर हाल में रहना।
कभी मुस्कुराना कभी गम सहना।
कभी रोना कभी खिलखिलाना
जीत के संग हार को भी गले लगाना।
जिंदगी यूँही चलती रहेगी।
दर्द और ख़ुसी हर हाल में सहेगी
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