कठपुतली सी जिंदगी अपनी
डोर उसके हाथ।
कभी खींचे इस ओर ,कभी खींचे उस ओर,
कभी छोड़े डोर का साथ।
जब चाहे जैसे चाहे ,वह देता है मोड़,
नही लगता अपने वश कुछ,
नही सूझता है कोई डगर हमें,
नही मिलता कोई सिरा या छोर।
कठपुतली सा नाच नचाये वह,
कभी हँसाये,कभी रूलाये वह,
कभी जिम्मेदारियों की ऊँची पहाड़ रखे,
कभी अलमस्त बेपरवाह बनाये वह।
काश की अपनी चाहत से डोर चलाये,
जिधर मन चाहे उधर हम जाये।
नाचे न कभी दूसरे इशारे पर,
कठपुतली सा जीवन न अपना बनाएं।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.