वो पगली

वो पगली

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 349
Ruchika Rai
Ruchika Rai 12 Mar, 2022 | 1 min read

खून से सनी,चीथड़ों में लिपटी,

बिखरे थे बाल,और 

अस्त व्यस्त फटे कपड़ों से झाँकता

हुआ उन्मुक्त यौवन।

थी वह पगली ,नही थी उसको होश

उसका यौवन दरिंदों को करता मदहोश।


कल अखबार में एक खबर पढ़ी,

थी झाड़ियों के बीच एक लाश पड़ी।

क्षत विक्षत पड़ा था उसका शरीर,

लूट ली गयी थी उस पगली की यौवन,

नही था उसके शरीर पर वसन।


पढ़कर हो गयी मैं खबर अवाक,

हताशा और निराशा घिर आई पास।

धिक्कार आया इस मानव समाज पर,

थू करती इंसानी हवसी कुछ भेड़ियों समाज पर।


घिन्नता की पराकाष्ठा यह तो हुई,

होश नही थी उसकी सरेआम लूट

अपनी हवस संतुष्टि की गयीं।

क्या यही हो भारत देश है जिस पर हमें नाज है

जहाँ स्त्रीयाँ देवी बनती चलती समाज में साथ हैं।


0 likes

Support Ruchika Rai

Please login to support the author.

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.