चाँद

चाँद

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 23 Apr, 2022 | 1 min read

रात को दिखता गगन में दूर से

वो अकेला चाँद।

जो है मेरे दर्द,तड़प, हँसी,खुशी 

और टूटते हौसलों का गवाह।

जब सारा जग सो जाता है,

वह मंद मंद मुस्काता है।

चुपके चुपके मेरे ज़ज़्बातों को 

वह हौले से सहलाता है।

दूर गगन से झाँकता वह चाँद,

दूर होकर भी पास होने का एहसास कराता है।

मेरे रतजगों का बना वो गवाह,

मेरी उलझनों की रहे सदा परवाह,

कैसे कटती रात मेरी,

क्या क्या सोच हुई हावी,

मेरे बहते आँसूओं की,

खबर नही किसी को भी,

उन आँसूओं को देखता वह अकेला चाँद।

कभी पूर्णिमा की रात में

चाँदनी संग इठलाता।

कभी अमावस की रात में

वह कोने में छुप जाता।

कभी आधा,कभी पूरा,

कभी थोड़ा,कभी ज्यादा।

रात दूर नभ में मुस्काता वह अकेला चाँद।

कभी करवा चौथ का चाँद बना वो

प्रियतम की उम्र बढ़ाता है।

उसके छवि में कभी

प्रियतम की छवि नजर आता है।

कभी ईद का चाँद बनकर

खुशियाँ घर में लाता है।

उत्सव का एहसास दिलाकर,

उमंग जोश भर जाता है।

एक अकेला चाँद वह,

मेरे अँधेरे रातों को चुपके से

साथी बन जाता है।

रात गगन से झाँकता वह अकेला चाँद

मंद मंद मुस्काता है।

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