कभी कभी खुद से ही मैं छलावा करती हूँ,
दर्द में भी खुश होने का दिखावा करती हूँ,
धोखा नही है ये स्वयं से या किसी और से,
इस तरह खुशियाँ लाने का दावा करती हूँ।
छलावे को जीकर लत उसकी लग जाती,
खुश रहने का भ्रम रखते हुए खुशियाँ है भाती,
चमत्कार जिंदगी में फिर होते हैं अक्सर,
रोने के क्षणों में अक्सर खुशियाँ है मिल जाती।
जिंदगी भी तो एक छलावा है हमें छलती है,
पूर्वानुमान से परे होकर हमें ठगती है,
कभी अचानक से कुछ घट जाती है घटनाएं,
साँसें रुकती नही पर मानो वह थमती है।
छलावा यहाँ सारे ही रिश्ते और नाते हैं,
अपनी मर्जी से ही वह रिश्ते निभाते हैं,
जब कभी आप मजबूर और बेबस हो,
वह अक्सर पहुँच से दूर बहुत चले जाते हैं।
प्रेम के नाम पर भी होता यहाँ छलावा है,
अपनेपन का हर कदम पर दिखावा है,
जब कभी मुश्किल में हाथ बढ़ाया आपने,
फिर समझ पाओगे सिर्फ भ्रम ही पाया है।
छलावा स्वयं से अक्सर हम कर लिया करते हैं,
नाउम्मीदी में उम्मीद को रोशन किया करते हैं,
इस तरह एक चमत्कार की आशा में सदा,
जिंदगी के सारे जहर मुस्कुरा कर पिया करते हैं।
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