प्रकांड विद्वान परम ज्ञानी,
अकूत खजाना,
सोने की नगरी उसकी लंका,
देवताओं से प्राप्त वरदान,
फिर भी बना वो बुराई का प्रतीक,
और प्रतिवर्ष होता है उसके प्रतीक रूप का दहन।
चारित्रिक रूप से होता पतन,
मर्यादाओं का अतिक्रमण,
अपनी विद्या का दम्भ और अभिमान,
और अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने का वहम,
मानवीय दुर्गुणों का बना प्रतीक,
और प्रतिवर्ष होता है उसके प्रतीक रूप का दहन।
कुंभकर्ण जैसा बलशाली भाई था जिसका,
मेघनाद जैसा प्रतिभाशाली पुत्र
मंदोदरी जैसी शांत और पतिव्रता पत्नी,
शिव से मिली शक्ति,
फिर भी नही था संतोष, देवताओं पर विजय पाने की लालसा,
और प्रतिवर्ष होता है प्रतीक रूप का दहन।
रावण का जीवन देता है सीख,
मर्यादित आचरण,धैर्य ,संयम, संतोष,
अहम के बिना जीवन ,
यही रहे मानवीय गुण सदैव
इसके बिना शक्ति, संपति,विद्वता,
नही आता काम,
हो जाता है विनाश।
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