एकांत

एकांत

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 24 Jul, 2022 | 0 mins read

हर एकांत में आती है कुछ कल्पनाएं

कुछ उम्मीदें

कुछ अधूरी इच्छाएं

कुछ सोच भी हावी होते हैं

कभी दर्द बढ़ता है कभी खुशी मिलती है।


हर एकांत में मन में पनपते हैं

कुछ विचार,

उन विचारों से मन में उठते प्रश्न

फिर उस प्रश्न के उत्तर के लिए हम व्याकुल,

और बेवजह ही हो जाते हम व्यथित।


हर एकांत में ढूंढते कोई अपना

कोई हो बेहद खास

कोई जो समझे हर ज़ज्बात

कोई जिससे कहने में न झिझक हो

मगर एकांत में लगता हर चेहरा अनजाना,

जिससे होता दर्द का एहसास।


हर एकांत में अपनेपन की चाहत,

नही कभी हो बेमुरव्वत,

मिल जाये सुकून का एक एहसास,

प्रेमनिधि जीवन में भरा हो

मुहब्बत बन जाये एक इबादत,

रूह से जुड़कर रिश्तों का रहे मान।


हर एकांत में एकांत होता कहाँ

होता ज़िम्मेदारियों का पुलिंदा

टूटते ख़्वाबो की किरचियाँ

अधूरी इच्छाओं का होता मातम।

पास से दूर होने की कसक,

बेरुखी का ढूंढा जाता सबब।

हर एकांत में

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