मेरे विद्यालय में एक लड़की थी नाम था परी।वाकई दिखने में परी सी ही थी।भोली भाली सुंदर सी।आँखें काली काली बड़ी बड़ी ,और उस पर उसकी पलकें जैसे आँखों की पहरेदार हों।
गोरी इतनी जैसे दूध की तरह सफेद हो।चेहरे पर बला की मासूमियत और गाल टमाटर की तरह जैसे एक पिन चुभाया तो खून गिरने लगेंगे।
वाकई वह परी ही थी।
पर कहते हैं ईश्वर सबको सब कुछ नही देता ,इतनी खूबसूरत सी परी मगर दिमाग का समुचित विकास नही।
हम सभी शिक्षक सिखाने का असफल प्रयास करते।मगर पिछले तीन वर्षों से क ख ग भी मुश्किल से सीख पाई थी।
हम शिक्षकों के सामने तो बच्चे समान व्यवहार करते मगर पीठ पीछे चिढ़ाते।उसे चिरई चिरई कहते।और यह सुनकर उसकी झुंझलाहट बढ़ती जाती।और मार पीट पर उतारू हो जाती।
पिछले वर्ष कोरोनाकाल में बच्चों से संपर्क छूट सा गया था।कुछ पढ़ने को इच्छुक बच्चे ही संपर्क में थे।और शायद मैं भी परी को भूल ही गयी थी।
स्कूल खुलने के बाद जब कई दिनों तक परी नही दिखी और नामांकन रजिस्टर अद्यतन कर रही थी तो अचानक परी का ध्यान आया।
बच्चों से पूछा तो पता चला कि परी की शादी हो गयी है।मैं हतप्रभ रह गयी।उसकी माँ को बुलाकर उसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि ऐसे समय बीतने पर शादी में मुश्किलें आती तो एक लड़के वाले ने सुंदरता देखकर प्रस्ताव कर दिया तो मैं झट से कर दी उसकी शादी।
मेरे मन में अनेकों सवाल थे पर जबाब तो परी से ही मिल सकता और परी का इंतजार है।
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