मैं प्रेम हूँ

प्रेम

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 375
Ruchika Rai
Ruchika Rai 19 May, 2022 | 1 min read

रोको,टोको,चाहे मन पर बाँध लगाओ

चाहे मन को सीमाओं में बाँधे जाओ,

जाने अनजाने ह्रदय में प्रस्फुटित,

प्रेम रूपी बीज का मन में अंकुरण पाओ।


कभी ताकत बन सारे मुश्किल तोड़ूं,

कभी हौसला बन ख़ुद को मैं जोड़ूँ,

मैं प्रेम कभी हिम्मत ,हौसला और शक्ति,

कभी कमजोरी बन हालातों से मुँह मोडूँ।


कभी फूल बन मन को सुवासित कर जाऊँ,

मन का हर कोना कोना मैं महकाऊं,

कभी शूल बनकर जीवन पथ में

अनेकों तकलीफें मैं यूँही लेकर आऊँ।


कभी तपती धूप में मैं बारिश की बूँदें 

बनकर तन मन को शीतल कर जाऊँ।

कभी भीषण ठंडी में ओलावृष्टि कर

प्राण लेने को आतुर हर हाड़ को मैं कंपाऊँ।


मैं प्रेम अनोखा हूँ मैं अंदाज निराला,

चुपके से आकर के दिल में पैठ जाऊँ।

नही कोई पूर्वयोजना,नही चले दूर रहने की भावना,

हर हाल में मैं जीवन में उथलपुथल कर जाऊँ।

0 likes

Support Ruchika Rai

Please login to support the author.

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.