यह धरा का असली हकदार,
वह है देश का मेहनती किसान।
न धूप गर्मी की चिंता उसको,
न ठंडी से घबड़ाता है,
रिमझिम रिमझिम वर्षा में भींग
खेत में हल चलाता है।
पसीने से तरबतर बदन,
थर थर काँपता है तन,
ले कुदाल फावड़ा मिट्टी कोड
वह बीज डाल नये फसल उगाता है।
नही कोई नेता,नही कोई सरकार
नही कोई जाति इसका है हकदार
नही किसी अफसर की
नही किसी सेठ महाजन की
नही किसी सांसद की,
नही किसी विधायक की,
नही मेरी नही उसकी नही तेरी
इस धरा का कोई नही हकदार।
वह किसान है इस धरा का असली हकदार।
सूरज की प्रखर किरणें पड़ती धरा पर,
चांदनी की शीतलता भी मिले यहाँ पर
बादलों की गरज
या बिजली की कड़कड़ाहट
कही भूकंप ,कही बाढ़ ,कही सूखा
नही मिटा सके अस्तित्व धरा का,
हुआ फसलों का नुकसान कुछ
फले खूब फसल
इसका है मालिक वो खेत का किसान।
वह है किसान इस धरा का असली हकदार।
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