आज के इस बदलते परिवेश और कानूनके अनुसार एक वयस्क व्यक्ति अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है और इसके तहत ही कानूनी मान्यता मिलने के कारण लिव इन का प्रचलन बढ़ता जा रहा है पर मेरी नजर में यह पूर्णतया अतार्किक और बेवकूफी भरा कदम है
इसको मैं निम्न बिंदुओं के अंतर्गत दिखाना चाहूँगी।
1.मेरा मानना है कि सिर्फ यह कहकर पुरानी परंपराओं को खारिज करना कि यह आज के समय में प्रासंगिक नही गलत है।
2.नये को स्वीकारना सही है मगर सिर्फ इस तर्ज पर की हम स्वयं को आधुनिक दिखलाये यह गलत है।
3.रिश्तों की मजबूती का आधार परस्पर प्रेम विश्वास और सम्मान होता है और यह जरूरी नही है कि यह लिव इन के साथ ही मिलें।
बल्कि लिव इन ने मुश्किलें बढ़ाई हैं ,अस्थायित्व ,क्षणिक सुखों की लालसा ने इसे पूर्णतः गलत बना दिया है।
और इसका दूरगामी परिणाम भयंकर हो रहे हैं,विशेषकर लड़कियों पर इसका ज्यादा बुरा असर पड़ रहा है।
लिव इन में जन्मे बच्चों का भविष्य संकटमय हो जा रहा है।
पाश्चात्य सभ्यता के नकल से बना लिव इन भारतीय रिश्तों की मजबूती पर सेंध है।
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