पनाह

पनाह

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 25 Aug, 2021 | 0 mins read

रब की पनाह में सिर झुका ही रहे,

वही समझेगा हमें बिना कुछ कहे ।

सारे समस्याओं का निदान करें वो,

फिर बात बेबात हम फिक्र क्यों करें।

वक़्त से पहले कहाँ कुछ मिला कभी,

रब की पनाह में ही सब कुछ हम सहे।

पनाह की तलाश में भटकते हुए,

मिल जाएगी मंजिल क्यों हम डरे।

जो धरती पर रब का रूप मॉं बाप,

उनकी पनाह में हम जिद पर हैं अड़े।

मौन रहकर कुछ मिलता है नही,

अपने अधिकारों के लिए मिलकर लड़े।

ताउम्र भटकते ही रह गए हम,

बस खुद के लिए पनाह ढूँढते हम रहे।

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