संग तेरे ऐसे रहूँ की मौत का डर न हो,
मुश्किल भरी राहों में तन्हा सफर न हो।
फूल खिलते हैं सदा मुरझाने के लिए,
मुरझाये फूलों का अफसोस मगर न हो।
हर ख़्वाब पर मेरे पहरा हो साथी तेरा,
ख़्वाब में भी कोई तनहा डगर न हो।
इतना बदनसीब न हो इस जहां में कोई,
जिसके लिए अपना कोई घर न हो।
लाख तूफान आये जिंदगी के समुंदर में,
हमारे हौसलों को डूबा ले लहर न हो।
काश की पाँव न रखूँ मैं उस दुनिया में,
जिस दुनिया में तेरा कोई शहर न हो।
कैसे दिल के हाल बया करूँ गजल में,
जब गजल में कोई भी सुंदर बहर न हो।
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