बदलते वक्त ,बदलते लोग ,बदलता नजरिया,
डरावनी होती जीवन में संबंधों की टूटती कड़ियाँ,
मन को हर पल डरावने से लगने लगते हैं,
गलत पैमाने से मापते और बदलती हैं घड़ियाँ।
डरावने होते हैं सोच जो हमारे लिए बदलते हैं,
जो हम नही वही उसी रूप में हमें समझते हैं,
डरावने लगते हैं अपेक्षाओं का टूटता तिलिस्म,
और उपेक्षित हर घड़ी हर पल जब हमें करते हैं।
डरावने होते हैं हमारे मन में पलता हुआ वहम,
बेवज़ह की अना और बेवजह मन का अहम,
डरावनी होती अपनों से दूर होने की ये कशिश,
डरावने लगता मैं और तुम से बने दूर होते हम।
अगर कोई यह सोचे की डरावनी है परिस्थिति,
मेरी माने परिस्थितियों के रूप ही हमारी स्थिति,
डरावनी होती स्थिति को न स्वीकारने की हिम्मत,
डरावनी बन जाती है हमारी अपनी ही नियति।
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