औरत की जिंदगी नही होती इतनी आसान,
कदम कदम पर प्रश्नों के अंबार तैयार मिलते हैं,
उनके शृंगार उनके कपड़े देखकर उलझ मत जाना,
इसके ओट में ही तो हर दर्द छुपे होते हैं।
बड़ी आसानी से कह देते सभी की जमाना बदल रहा है,
ये किस जमाने की बात तुम्हारी सोचों में पल रहा है,
पर यथार्थ की धरातल पर तस्वीर कुछ ऐसी है,
जिल्द नई और किताब वही पुराना चल रहा है।
घर से बाहर निकलने से पहले जिम्मेदारियों का अंबार है,
घर कब तक आना है फिर काम उसके बाद के लिए तैयार है,
पल पल का हिसाब सेकंड की सुइयों से भी तीव्र चल रहा है,
आखिर देर क्यों हो गयी यह प्रश्न भी सबके मन में मचल रहा।
किसका फ़ोन क्यों आया इसका हिसाब देना है,
किसने क्या बात किया इसका भी जबाब देना है,
दोस्तों के संग पार्टी हैं ये कौन सी बात हुई,
पारिवारिक उत्सव का माहौल तेरे लिए ही बना।
वाकई जमाना बदल रहा है,पैसे कमाने की मशीन भी वो बनी,
कुल मर्यादा निभाने की जिम्मेदारी है उसके ऊपर पडी
आधुनिक बनकर बाहर क्लब में पति के साथ जाना है,
घर में संस्कारी बहु बनकर जिम्मेदारी तुम्हें निभाना है।
वाकई जमाना बदल रहा ,उन्नति का मार्ग दिख रहा।
नारी उत्थान का मार्ग है प्रशस्त हो रहा।
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