स्त्री

स्त्री कभी थकती नही

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 399
Ruchika Rai
Ruchika Rai 08 Jul, 2022 | 0 mins read

जिम्मेदारियों के भँवर में कितनी हो उलझी,

फिर भी ऊपर से दिखती तुम सदा सुलझी,

लेकर के घर बाहर की तुम सारी जिम्मेदारी,

मुस्कुराहट के संग करती हो उसे पूरी सारी,

न कभी शिकन हावी होने देती तुम चेहरे पे,

स्त्री तुम कभी थकती नही हो।


सूरज के उगने से पहले तुम रोज उठ जाती,

सबके जरूरत का हर चीज उपलब्ध कराती,

रखती हो ख्याल सबके पसंद और नापसंद का,

स्वयं के पसंद को कहाँ जेहन में तुम लाती,

इस तरह तुम सारा दिन सबके लिए लगी रहती हो,

स्त्री तुम कभी थकती नहीं हो।


पति के लिए तुम ही रति बन जाती हो सदा,

बीबी , प्रेमिका , माँ,बहन की भूमिका निभाती,

बच्चों की शिक्षिका दोस्त बनकर सदा ही तुम,

उनका ख्याल हर वक्त तुम किये सदा जाती,

घर की रसोई से लेकर डॉक्टरी भूमिका निभाती,

स्त्री तुम कभी थकती नही हो।


प्रेम ,त्याग, समर्पण की हो तुम ही पाठशाला,

तुमसे ही सीखे सभी जीवन का रूप निराला,

रिश्ते सहेजने की कोशिश में लगी हुई हो तुम,

उसके लिए दर्द तुम्हारे दिल ने कितना संभाला,

प्रेम की अद्भुत अतुलनीय मिसाल हो सदा तुम,

स्त्री तुम कभी थकती नही हो।


0 likes

Support Ruchika Rai

Please login to support the author.

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.